संस्थापक सन्देश
अपने वन प्रवास तथा यात्राओं के समय में पाया कि समाज में जहाँ एक वर्ग के पास उसकी आव्यश्यक्ताओं से भी ज्यादा संसाधन हैं तो वहीं एक वर्ग शिक्षा, चिकित्सा और भोजन जैसी मुलभुत सुविधाओं से भी वंचित है| संत जो समाज और प्रत्येक जीवमात्र के कल्याण हेतु अपना समस्त जीवन साधना करते हैं, उनकी सेवा और सहायता को कोई व्यवस्था नहीं है| जिन लोगो के पास पर्याप्त साधन हैं वो भी अपने धन को अपने उपभोग का साधन मात्र मानकर चल रहें हैं| हर वर्ग में लिंग भेद, नशा, अशिक्षा और जातीय भेद जैसी कुरीतियाँ व्याप्त हैं|