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 श्री कृष्णा विरक्त जी महाराज

viraktजन्म –  विक्रम संवत 2045, आंग्ल सन 1988, भाद्रपद

जन्म स्थान – कानपूर

चार वर्ष की अल्पायु में ही विभिन्न परिस्थितियों वश प्रभु कृष्ण के समान इनका अपने माता पिता से बिछोह हो गया और प्रयागराज में लालन-पालन हुआ| इनका जन्म मानव सेवा के लिए ही हुआ था अत: बाल्यावस्था से संतो के सानिध्य में रहते हुए अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर हो गए|  प्रयागराज और वाराणसी जैसी धर्म नगरियों में शिक्षा ग्रहण करते हुए अध्यात्मिक साधनाओ को करते रहे|

कृष्णा विरक्त जी जन्म के बाद से ही संत जीवन व्यतित करते हुए साधना में रत रहे| सन 1995 में सात वर्ष की अल्पायु में ही आपने दीक्षा गृहण कर ली और विरक्त संत पद्धति को अंगीकृत किया| सन 2008 में आपने कठिन साधना के मार्ग को अपनाते हुए वनों में साधन हेतु प्रस्थान कर गये और सन 2008 से सन 2012 तक हिमालय की दुरूह चोटियों और कंदराओ तथा सघन वन क्षेत्र में रहकर कठिन साधना की|

उस समय में भी वनवासी समाज के मध्य जाकर शिक्षा, कन्या शिक्षा, वन्यजीव संरक्षण और नशामुक्ति के लिए जागरण करते रहे|

अपनी साधना और यात्राओं के समय ही मानव समाज में व्याप्त कुरीतियों के उन्मूलन और संतो की सेवा का प्रण मन में किया और इस दिशा में कार्य प्रारंभ कर दिया| गुरु देव को “कुलाधीश” की गद्दी भी मिल गयी परन्तु फिर भी मानव और संत सेवा को अपना परम ध्येय मानते हुए सेवा गतिविधियों में पूरी तरह लिप्त रहे और सामान्य जीवन व्यतीत करते हुए अपने जन-सेवा के अभियान को आगे बढ़ा रहें हैं|

इस कार्य की सिद्धि हेतु गुरूजी ने समाज के विभिन्न वर्गी से जुड़े आम नागरिको का आवाहन किया और उन्हें अपने इस अभियान से जोड़ते हुए इन सेवा कार्यों का दायरा लगातार बढ़ाते गये| सन 2015 में आपने मांडू आश्रम, निकट ग्राम मवई, बुलंदशहर” में “आश्रम” की स्थापना की तथा उसके उपरान्त “गुरु भगवान् धर्मार्थ ट्रस्ट” की स्थापना की|

आज इतने बड़े अभियान को प्रारंभ करने के उपरान्त भी श्री कृष्णा विरक्त जी महाराज इस सब का पूर्ण श्रेय अभियान से जुड़े समाज के विभिन्न लोगो को देतें हुए “इदं न मम” के विराट भाव के साथ अपने सेवा के पथ पर अग्रसर हैं|

श्री कृष्णा विरक्त जी महाराज का कथन, जो आज बहुत से युवाओं का ध्येय वाक्य बन चूका है ...

“बड़ा कार्य जिसकी कोई आव्यश्यकता ना हो, करने से बेहतर वो छोटा कार्य, जो आव्यश्यक हो करना चाहिए| जिससे जरुरत मंदों और वंचितों की जरूरतें पूरी होती रहें| इस प्रकार ये छोटे कार्य ही समाज में बड़ा परिवर्तन ला देंगे और एक अभियान का रूप ले लेंगे|”