संस्थापक सन्देश अपने वन प्रवास तथा यात्राओं के समय में पाया कि समाज में जहाँ एक वर्ग के पास उसकी आव्यश्यक्ताओं से भी ज्यादा संसाधन हैं तो वहीं एक वर्ग शिक्षा, चिकित्सा और भोजन जैसी मुलभुत सुविधाओं से भी वंचित है| संत जो समाज और प्रत्येक जीवमात्र के कल्याण हेतु अपना समस्त जीवन साधना करते हैं, उनकी सेवा और सहायता को कोई व्यवस्था नहीं है| जिन लोगो के पास पर्याप्त साधन हैं वो भी अपने धन को अपने उपभोग का साधन मात्र मानकर चल रहें हैं| हर वर्ग में लिंग भेद, नशा, अशिक्षा और जातीय भेद जैसी कुरीतियाँ व्याप्त हैं| ये सब देखकर मन में व्यथा होती थी| भौतिक जीवन से विरक्ति मानव कल्याण हेतु ली थी परन्तु मानव सेवा के अपने कर्त्तव्य से तो मैं विरक्त नहीं हो सकता था| तब मैंने व्यक्तिगत स्तर पर नागरिकों में जागरण का प्रयास प्रारंभ किया| बहुत से सजग नागरिक मेरे इस प्रयास में मेरे साथ आये और उनके सहयोग से संत सेवा के लिए शिविर प्रारंभ किये गए| इस तरह कार्यों का दायरा बढ़ता गया और अन्य गतिविधियाँ भी प्रारंभ होती गयी| और इस तरह एक छोटा सा प्रयास वर्तमान में एक बड़े अभियान का स्वरुप ले चूका है| श्री गुरु भगवान् के आशीर्वाद और उन सभी सहयोगी-जनों के सहयोग से ही ये प्रयास फलीभूत हो सका है| आज इस अभियान के इतना व्यापक रूप लेने का पूर्ण श्रेय मैं श्री श्री गुरु भगवान के आशीर्वाद और समाज के उन साधू जनो को देता हूँ जो संत ना होकर गृहस्थ हैं, परन्तु संतो के समान ही मानव सेवा को अपना जीवन ध्येय समझते हैं| मैं श्री गुरु भगवान का वंदन करता हूँ और इस अभियान में विभिन्न रूप से सहयोगी रहे समाज के गुणी बंधू-जनों का आभार व्यक्त करता हूँ|
गुरु भगवान धर्मार्थ ट्रस्ट गुरु भगवान् धर्मार्थ ट्रस्ट श्री कृष्णा विरक्त जी महाराज ने हिमालय की कंदराओ में रहकर साधना की तथा भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रवास किया| तब उन्होंने पाया की समाज के विभिन्न वर्गों में आज भी अशिक्षा, नशा, लिंगभेद, जातीय विद्वेष जैसी कुरीतियाँ व्यापक रूप से फैली हुई हैं| मानव समाज अपनी वन संपदा और प्राकृतिक सम्पदा के संरक्षण हेतु सजग नहीं है| मानव घोर भौतिकवादी और उपभोगवादी आचरण से ग्रसित होकर पर्यावरण को नष्ट करके आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को अन्धकार में धकेल रहा है| महाराज ने ये भी पाया कि संत समाज जो अपना सम्पूर्ण जीवन मानव कल्याण हेतु जीवनभर साधना में लगा देता है और जनकल्याण को ही अपना ध्येय समझता है, आव्यश्यकता के समय पर संतो की सेवा और सहायता की व्यवस्था भी पर्याप्त नहीं है| कोई व्यवस्था नहीं है जिसके अंतर्गत संतो की सेवा, चिकित्सा या सहयता का कार्य होता हो| अपने इन अनुभवों के आधार पर कृष्णा विरक्त जी महाराज ने इन कुरीतियों से समाज को बाहर लाने हेतु प्रयास प्रारंभ किया| प्रारंभ में श्री कृष्णा विरक्त जी महाराज के आवाहन एवं मार्गदर्शन से “श्री गुरुभगवान संत सेवा शिविर” के नाम से, समाज के कुछ जागरूक नागरिको के सहयोग के द्वारा, संत सेवा का कार्य प्रारंभ हुआ था| जिसके अंतर्गत वृद्ध, बीमार तथा नि:सहाय संतो की सेवा तथा उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित की गयी| ये कार्य धर्म सम्प्रदाय के भाव से उपर उठकर हर मत के संत के लिए किया जाता रहा है| जब समाज के अन्य नागरिक इस कार्य से जुड़ते गए तो इस प्रयास ने एक अभियान का रूप ले लिया| 2012 में जनपद - बुलंदशहर के ग्राम - मवई में श्री कृष्णा विरक्त जी महाराज के द्वारा एक आश्रम की स्थापना की गई तथा गुरु भगवान् धर्मार्थ ट्रस्ट के नाम से एक ट्रस्ट की स्थापना की गयी| वर्तमान में “गुरु भगवान् धर्मार्थ ट्रस्ट” के द्वारा संत सेवा, कन्याओं के विवाह, वंचित वर्ग के लिए शिक्षा तथा स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण एवम साधन उपलब्ध करवाने, समाज में नशा मुक्ति के लिए जागरूकता अभियान तथा प्रकृति संरक्षण जैसे कितने ही अभियान चलाये जा रहें हैं| जिनका केंद्र “मांडू आश्रम, मवई, बुलंदशहर” है| वर्तमान में श्री कृष्णा विरक्त जी महाराज के आवाहन से भारत के विभिन्न हिस्सों में ट्रस्ट के द्वारा संचालित सेवा कार्य चल रहें हैं और समाज के विभिन्न वर्गों के इस अभियान से जुड़ने से ट्रस्ट के सेवा कार्यों की व्यापकता क्रमश: वृद्धि कर रही है| |